शिबू सोरेन को क्यों कहा जाता है ‘दिशोम गुरु’? जानिए उनके संघर्ष की कहानी

Pratik Yadav

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रांची: झारखंड आंदोलन के सबसे प्रमुख चेहरों में से एक शिबू सोरेन को आज पूरा देश ‘दिशोम गुरु’ (यानी आदिवासी समाज का महान नेता) के नाम से जानता है। लेकिन इस उपाधि के पीछे सिर्फ राजनीति नहीं, बल्कि दशकों का संघर्ष, आदिवासी अधिकारों के लिए लड़ाई और जनआंदोलन की गूंज छुपी है।

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कौन हैं शिबू सोरेन?

शिबू सोरेन झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) के संस्थापक हैं और झारखंड राज्य की मांग को लेकर लड़े सबसे प्रमुख नेताओं में गिने जाते हैं। उनका जन्म 11 जनवरी 1944 को बिहार (अब झारखंड) के दुमका जिले के नेमरा गांव में हुआ था। आदिवासी समाज से आने वाले शिबू सोरेन बचपन से ही सामाजिक असमानता और शोषण के खिलाफ आवाज उठाते रहे।

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‘दिशोम गुरु’ की उपाधि क्यों मिली?

शिबू सोरेन को “दिशोम गुरु” इसलिए कहा जाता है क्योंकि उन्होंने आदिवासियों की भूमि, जल, जंगल और अधिकार की लड़ाई को पूरे देश में मजबूती से उठाया। “दिशोम” का मतलब संथाली भाषा में “देश” या “जनजातीय क्षेत्र” होता है और “गुरु” यानी मार्गदर्शक। उन्होंने आदिवासियों को संगठित किया, उनके अधिकारों के लिए संघर्ष किया और कई जनआंदोलन खड़े किए।

संघर्षों की लंबी कहानी:

  • भूमि के लिए लड़ाई: 1970 के दशक में उन्होंने ज़मींदारों और बाहरी लोगों द्वारा आदिवासी ज़मीनों पर कब्जा किए जाने के खिलाफ आंदोलन चलाया।
  • झारखंड राज्य की मांग: बिहार से अलग होकर झारखंड राज्य बनाए जाने की मांग को लेकर वे वर्षों तक आंदोलनों का नेतृत्व करते रहे।
  • लोकसभा में आवाज: वे कई बार सांसद बने और केंद्र सरकार में कोयला मंत्री भी रहे। लेकिन उनका मुख्य फोकस हमेशा आदिवासी हित रहा।
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जननायक से ‘गुरु’ बनने तक:

शिबू सोरेन को उनकी नीतियों, दृढ़ता और समाज के लिए त्याग के कारण जनजातीय समुदाय ने “दिशोम गुरु” का दर्जा दिया। यह कोई राजनीतिक उपाधि नहीं, बल्कि एक सम्मान है जो उन्हें आदिवासी जनमानस ने खुद दिया है

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