अमेरिका में वीजा पर जा रहे भारतीय आईटी पेशेवरों और कर्मचारियों को एक और झटका लगा है। ट्रंप प्रशासन की सिफारिश के बाद अब H-1B और L-1 वीजा जैसे वर्क वीजा के लिए दोगुनी से भी ज्यादा फीस देनी होगी। नए नियम के तहत “वीजा इंटेग्रिटी फीस” भी जोड़ी गई है, जिससे भारतीय कंपनियों पर वित्तीय दबाव और बढ़ जाएगा।
क्या है नया बदलाव?
अमेरिकी कांग्रेस में पारित हुए नए प्रस्ताव के अनुसार:
- H-1B वीजा की फीस अब लगभग $780 से बढ़ाकर $1,850 कर दी गई है।
- L-1 वीजा की फीस $1,385 से बढ़ाकर $2,805 कर दी गई है।
- इसके अलावा एक अलग से $4,000 (H-1B) और $4,500 (L-1) का “वीज़ा इंटेग्रिटी शुल्क” उन कंपनियों को देना होगा, जिनके 50% से ज्यादा कर्मचारी H-1B या L-1 वीजा पर हैं।

भारतीय कंपनियों पर सीधा असर
इस बदलाव का सबसे बड़ा असर भारतीय IT कंपनियों जैसे TCS, Infosys, Wipro, HCL आदि पर पड़ेगा। ये कंपनियाँ हर साल हजारों की संख्या में भारतीय कर्मचारियों को अमेरिका भेजती हैं।
उद्योग विशेषज्ञों के अनुसार, इससे इन कंपनियों की लागत में भारी इजाफा होगा और नई नियुक्तियों पर असर पड़ सकता है।
भारत सरकार ने जताई चिंता
भारत सरकार ने अमेरिका से इस फैसले पर पुनर्विचार की अपील की है। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा, “ऐसे कदम भारत-अमेरिका व्यापार संबंधों पर विपरीत प्रभाव डाल सकते हैं।”
वीजा इंटेग्रिटी शुल्क का मकसद क्या है?
अमेरिकी प्रशासन का कहना है कि यह शुल्क वीजा प्रक्रिया में पारदर्शिता और निगरानी के लिए लिया जा रहा है। इसे “फ्रॉड प्रिवेंशन और इंटेग्रिटी फंड” में डाला जाएगा, जिसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि वीजा का दुरुपयोग न हो।
ट्रंप की चुनावी रणनीति या संरक्षणवाद?
डोनाल्ड ट्रंप ने फिर से राष्ट्रपति चुनाव की तैयारी में “अमेरिका फर्स्ट” नीति को दोहराया है। जानकारों का मानना है कि यह फैसला देश में नौकरी देने के वादे और विदेशी कर्मचारियों को सीमित करने की नीति का हिस्सा है।