बिहार के गर्व और मिथिला की सांस्कृतिक पहचान माने जाने वाले मखाना को अब वैश्विक पहचान मिल चुकी है। हाल ही में मिथिला मखाना को जियोग्राफिकल इंडिकेशन (GI) टैग प्राप्त हुआ है, जिसे आप “ग्लोबल पासपोर्ट” भी कह सकते हैं। इसके साथ ही भारत से निर्यात होने वाले मखाने पर अब एक विशेष कोड अंकित रहेगा, जिससे वैश्विक बाजार में इसकी विशिष्ट पहचान बन सकेगी।
यह भी पढ़ें: SSC JE 2025 भर्ती: जूनियर इंजीनियर के पदों पर वैकेंसी, ऐसे करें आवेदन
क्या है GI टैग?
GI (Geographical Indication) टैग किसी विशेष क्षेत्र में उत्पन्न उत्पाद को उसकी विशिष्टता के आधार पर दिया जाता है। यह टैग उस वस्तु की गुणवत्ता, परंपरा और विशिष्ट पहचान को दर्शाता है। जैसे दरभंगा के मखाने, बनारसी साड़ी, या कोलकाता का रसगुल्ला।
मिथिला मखाना क्यों है खास?

- मिथिला क्षेत्र, विशेषकर दरभंगा, मधुबनी, सुपौल और सहरसा जिलों में मखाना की खेती पारंपरिक तरीकों से की जाती है।
- यह मखाना आकार, स्वाद और पोषक तत्वों के मामले में उत्तम गुणवत्ता का होता है।
- इसमें उच्च मात्रा में प्रोटीन, फाइबर और एंटीऑक्सीडेंट पाए जाते हैं।
- यह लो-फैट, ग्लूटेन फ्री और डायबिटिक फ्रेंडली सुपरफूड माना जाता है।
ग्लोबल बाजार में होगा विस्तार
अब जब मिथिला मखाना को GI टैग मिल गया है और इसके निर्यात के लिए स्पेशल कोडिंग सिस्टम लागू हो गया है, तो:
- इसकी जालसाजी और मिलावट पर लगाम लगेगी।
- वैश्विक बाजारों में मिथिला मखाना अपनी असली पहचान के साथ पहुंचेगा।
- किसानों और उत्पादकों को बेहतर दाम और सीधा लाभ मिलेगा।
- ब्रांड बिहार को अंतरराष्ट्रीय मंच पर पहचान मिलेगी।
किन संस्थाओं का है योगदान?
इस सफलता के पीछे कई संगठनों और संस्थाओं की अहम भूमिका रही है:
- भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR)
- बिहार कृषि विश्वविद्यालय
- APEDA (Agricultural and Processed Food Products Export Development Authority)
- मखाना उत्पादक किसान समूह
इन सभी के समन्वित प्रयासों से मिथिला मखाना को यह वैश्विक मान्यता प्राप्त हुई है।
क्या मिलेगा किसानों को फायदा?
बिलकुल! GI टैग और वैश्विक निर्यात कोडिंग के जरिए:
- किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य से अधिक कीमत मिलने की उम्मीद है।
- निर्यात की मांग बढ़ने से क्षेत्रीय अर्थव्यवस्था को मजबूती मिलेगी।
- महिलाओं और युवाओं को रोजगार के नए अवसर मिलेंगे, खासकर मिथिला क्षेत्र में।